सुप्रीम कोर्ट में बोली मोदी सरकार – पूरे देश में एनआरसी कराया जाना आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट में बोली मोदी सरकार – पूरे देश में एनआरसी कराया जाना आवश्यक


Mar 19, 2020  m rizwan 



केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दावों के उलट केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल कर देश भर में अवैध प्रवासियों के पहचान के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को जरूरी कार्रवाई बताया है। हलफनामे में कहा गया है कि शासन के सिद्धांत के रूप में देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान, सरकार की एक संप्रभु, वैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है।


हलफनामे में कहा गया है- मैं बताता हूं कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स के संबंध में कानूनी प्रावधान यानी 1955 एक्ट की धारा 14 ए के दिसंबर, 2004 से 1955 एक्ट का हिस्सा है। यह दलील दी गई है कि उक्त प्रावधानों में केवल राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया और प्राधिकरण से संबंधित अधिकार शामिल हैं। गैर-नागरिकों और नागरिकों की पहचान के लिए नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना किसी भी संप्रभु देश के लिए एक आवश्यक कार्य है।


मौजूदा वैधानिक शासन के अनुसार, भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों के तीन वर्ग हैं – नागरिक, अवैध प्रवासी और वैध वीजा पर रह रहे विदेशी। इसलिए, फॉरेनर्स एक्ट, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) कानून, 1920 और 1955 एक्ट की संयुक्त पठन से, केंद्र सरकार को जिम्मेदारी दी गई है, कि वह अवैध प्रवासियों की पहचान करे/ पता लगा सके और उसके बाद कानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर सके।


हलफनामे में हंस मुलर ऑफ नुरेनबर्ग्स बनाम सुपरिंटेंडेंट, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता व अन्य,एआईआर 1955 एससी 367 के मामले का उल्लेख भी है, जो कानून की योजना, दायरे और परिक्षेत्र की जांच करते समय उसमें दिए गए वर्गीकरणों को सही ठहराता है और केंद्र सरकार को दी गई शक्तियों का विस्तार करता है।



हलफनामे में कहा गया है कि फॉरेनर्स एक्ट, 1946 और 1955 एक्ट के स्पष्ट आदेश के तहत कोई भी अवैध प्रवासी अनुच्छेद 32 के तहत भारत में बसने और निवास करने का अधिकार नहीं मांग सकता और आगे भी नागरिकता के लिए कोई दावा नहीं कर सकता। केंद्र सरकार के पास कानून की नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए अवैध प्रवासियों के निर्वासन का अधिकार है।


भारत के संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के तहत केंद्र सरकार को 1958 से अवैध विदेशी को हिरासत में लेने और निर्वासित करने की शक्तियां सौंपी गई हैं। अनुच्छेद 21 का विस्तार भारत में व्यापक है और यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि यह पूर्णतया अवैध प्रवासियों के लिए उपलब्ध होगा।


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