सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर असहमति जताई

*आशू यादव की कलम कानपुर से।    पत्रकार।*
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*लखनऊ, जेएनएन। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में हिंसा के दौरान सरकारी तथा अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों की फोटो होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स में लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर असहमति जताई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ में हिंसा के दौरान तोड़फोड़ करने वाले आरोपियों के फोटो वाले होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स को हटाने के निर्देश को चुनौती दी थी।*



*न्यायमूर्ति यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई की। सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान लखनऊ तथा अन्य शहरों में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के लखनऊ में लगे पोस्टर के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने विचार के लिए तीन जजों की पीठ को भेजा। फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस उमेश उदय ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन बेंच इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक से इनकार कर दिया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार को अब 16 मार्च तक सभी पोस्टर हटाने होंगे।*


*उत्तर प्रदेश सरकार को राहत नहीं* 


*नागरिकता संशोधन कानून के* *विरोध में लखनऊ में हिंसा के दौरान तोड़फोड़ के आरोपितों के लखनऊ में लगाए गए वसूली के पोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश सरकार को राहत नहीं मिली है। इन पोस्टरों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया था, जिसे योगी आदित्यनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस उमेश उदय ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन बेंच इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने का फैसला सुनाया। जस्टिस ललित ने कहा कि इस मामले को चीफ जस्टिस देखेंगे। इस मामले में सभी व्यक्ति जिनके नाम होर्डिंग्स में नाम हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के* *सामने मामले में पक्ष रखने की अनुमति दी गई है।*


*इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 95 लोग शुरुआती तौर पर पहचाने गए। उनकी तस्वीरें होर्डिंग पर लगाई गईं। इनमें से 57 पर आरोप के सबूत भी हैं। आरोपियों ने अब निजता के अधिकार का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में होर्डिंग को चुनौती दी, लेकिन पुत्तास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले में भी निजता के अधिकार के कई पहलू बताए हैं। इस पर जस्टिस ललित ने कहा कि अगर दंगा-फसाद या लोक संपत्ति नष्ट करने में किसी खास संगठन के लोग सामने दिखते हैं तो कार्रवाई अलग मुद्दा है, लेकिन किसी आम आदमी की तस्वीर लगाने के पीछे क्या तर्क है।*


*सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने पहले चेतावनी और सूचना देने के बाद यह होर्डिंग लगाए। प्रेस मीडिया में भी बताया। इस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि जनता और सरकार में यही फर्क है। जनता कई बार कानून तोड़ते हुए भी कुछ कर बैठती है, लेकिन सरकार पर कानून के मुताबिक ही चलने और काम करने की पाबंदी है। इस दौरान जस्टिस ललित ने कहा कि फिलहाल तो कोई कानून आपको सपोर्ट नहीं कर रहा। अगर कोई कानून है तो बताइए।*


*होर्डिंग हटा लेना बड़ी बात नहीं है, लेकिन विषय बड़ा*


*सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दी है कि अगर कोई मुद्दा या कार्रवाई जनता से सीधा जुड़े या पब्लिक रिकॉर्ड में आ जाए तो निजता का कोई मतलब नहीं रहता। होर्डिंग हटा लेना बड़ी बात नहीं है, लेकिन बिषय बड़ा है। कोई भी व्यक्ति निजी जीवन में कुछ भी कर सकता है लेकिन सार्वजनिक रूप से इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती है। तुषार मेहता ने कहा कि हमने आरोपियों को नोटिस जारी करने के बाद कोई जवाब ना मिलने पर अंतिम फैसला किया। इस प्रकरण में 57 लोग आरोपी हैं, जिससे वसूली की जानी चाहिए। हमने भुगतान के लिए 30 दिनों की मोहलत दी थी।*


*सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ब्रिटिश रॉयल सुप्रीम कोर्ट के ऑपरेशन एक्सपोज को कानूनन सही ठहराने के आदेश का हवाला देने के बाद इसी दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी दारापुरी की ओर से बहस शुरू की। सिंघवी ने कहा कि यूपी सरकार ने कुछ बुनियादी नियम की अनदेखी की। अगर हम यूं ही बिना सोचे समझे एक्सपोज करते रहे तो नाबालिग दुष्कर्मी के मामले में भी यही होगा? इसमें बुनियादी दिक्कत है। यूपी सरकार ने लोकसम्पत्ति नष्ट करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले की अनदेखी की। यहां पर सरकार ने तो जनता के बीच ही भीड़ में मौजूद लोगों को दोषी बना डाला।शीर्ष अदालत की बेंच ने उत्‍तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्‍हें आरोपियों का पोस्‍टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है।*


*सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि किस कानून के तहत सरकार ने दंगा के आरोपियों का बैनर लगाया। जस्टिस अनुरुद्ध बोस ने कहा कि सरकार कानून के बाहर जाकर काम नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन जजों की बेंच को भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्टे नहीं किया है। कोर्ट ने पोस्टर लगाना यही या गलत इस पर कोई फैसला नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपियों की तस्‍वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं। कोर्ट ने कहा कि लखनऊ के विभिन्न चौराहा और मुख्य सड़क के किनारे होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स में 57 से अधिक आरोपितों के फोटो लगे हैं। इस मामले का इलाहाबाद होई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को सभी होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स को हटाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने होर्डिंग्स पर कथित आगजनी करने वालों का ब्योरा देने के लिए कदम उठाया है। कोर्ट राज्य सरकार की चिंता को समझ सकता है लेकिन अपने फैसले को वापस लेने का कोई कानून नहीं है।*


*सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दलील दी कि प्रदेश में काफी प्रदर्शनकारी खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं। मीडिया ने उनका वीडियो बनाया। सबने वीडियो देखा। ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। निजता के कई आयाम होते हैं। अगर आप दंगों में खुलेआम बंदूक लहरा रहे हैं और चला रहे हैं तो आप निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते।*


*यूपी सरकार की इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में एसजी तुषार मेहता ने कहा कि एक व्यक्ति विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाता है और कथित तौर पर हिंसा में शामिल होता है। ऐसा व्यक्ति निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। सरकार ने लखनऊ में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार को प्रदर्शनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश दिए थे। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लगाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।*


*अवकाश कालीन पीठ ने की सुनवाई*


*प्रदेश सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाश कालीन पीठ ने आज सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में होली की छुट्टियों के दौरान* *अवकाश कालीन पीठ अर्जेन्ट (तत्काल) मामलों की सुनवाई के लिए बैठी। यह पहला मौका है जबकि सुप्रीम कोर्ट में होली की एक सप्ताह की छुट्टियों को दौरान भी अवकाश कालीन पीठ बैठी। अवकाश कालीन पीठ सिर्फ गर्मी की छुट्टियों के दौरान ही बैठती थी।* 


*उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है जिस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है। अपील में दिए गए अपने आधारों का जिक्र करते हुए कहा कि पोस्टर में नाम और फोटो छापने को हाईकोर्ट का निजता के अधिकार का हनन बताया जाना ठीक नहीं है क्योंकि यह मामला निजता के अधिकार के तहत नहीं आता। यहां जो चीजें पहले से सार्वजनिक हैं उन पर निजता का अधिकार नहीं लागू होता। इस मामले में पहले से सारी चीजें सार्वजनिक हैं। दूसरा आधार अपील में मामले को जनहित याचिका बनाए जाने को लेकर है। यह मामला जनहित याचिका का नहीं माना जा सकता क्योंकि जनहित याचिका की अवधारणा उन लोगों के लिए लाई गई है जो किसी कारणवश कोर्ट आने में असमर्थ हैं उनकी ओर से जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है। या फिर जिन मामलों में आबादी का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा हो जैसे पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में जनहित याचिका हो सकती है लेकिन मौजूदा मामला ऐसा नहीं है।*


*एडवोकेट जनरल ने कहा कि मौजूदा मामले में प्रभावित लोग कोर्ट जा सकते हैं और रिकवरी नोटिस के खिलाफ कुछ लोग कोर्ट गए भी हैं ऐसे में इस मामले को जनहित याचिका के तहत नहीं सुना जाना चाहिए। उन्होंने इस याचिका का और ब्योरा व आधार साझा नहीं किये। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत नौ मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि प्रदेश सरकार को ऐसे पोस्टर लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने को निजता के अधिकार का भी हनन कहा था।*


*हाईकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान*


*लखनऊ में प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की घटना का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और फौरन इनको हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा ने अपने आदेश में कहा था कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च तक होर्डिंग्स हटवाएं। इसके साथ ही होर्डिंग हटाने की जानकारी रजिस्ट्रार को दें। कोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने को कहा था।*


*हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना अवैध है। यह निजता के अधिकार का हनन है। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है।*


*संपत्तियां होंगी जब्त*


*लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कहा था कि प्रशासन ने इनकी फोटो लगी हुई होर्डिग्स उन इलाकों में लगवाई, जहां इन्होंने तोडफ़ोड़ की थी। आगे अगर पुलिस साक्ष्य उपलब्ध कराएगी तो बाकियों से भी वसूली होगी। सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन का समय दिया गया है। यहां पर वसूली राशि जमा करने में असफल रहने की स्थिति में नामजद आरोपियों की संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सरकार अभी हाई कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रही है। जो भी निर्णय लिया जाएगा प्रदेश की 23 करोड़ जनता के हित में लिया जाएगा। सोमवार को अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने भी लोकभवन में अफसरों के साथ बैठक की। बैठक में लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश, पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय और न्याय विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे।*


*57 लोगों का लगाया गया पोस्टर*


*दिसंबर में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम और पते के साथ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिग्स लगाए गए हैं। सभी लोग राज्य की राजधानी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं। प्रशासन ने पहले ही 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन सभी लोगों को वसूली के लिए नोटिस जारी किया है।*


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