दिल्ली पुलिस का दिल क्यों सुकड़ गया?

दिल्ली (मोंटू राजा)




पीड़ित से रंगदार द्वारा 25000 रंगदारी की मांग, न देने पर जान से मारने की धमकी! अब तक पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं। 




यूं तो दिल्ली पुलिस अपने आप को (दिल्ली पुलिस दिल की पुलिस) का खिताब देती है... पर यह कहना कितना सही है? कुछ घटनाएं इसपर सवाल उठा देती है! 




ऐसी ही एक घटना दिल्ली के उत्तरी जिले (North District) में मौजूद कोतवाली थाना क्षेत्र से सामने आई है, जहां पीड़ित के अनुसार ओल्ड लाजपत राय मार्केट में एक स्ट्रीट वेंडर (रियाज़) से एक दुकान के मालिक (जितेंद्र सोनी) द्वारा रंगदारी के ₹25000 प्रति माह मांगे गए, जिसे न देने पर पटरी वाले को मारने की धमकी भी दी गई। पटरी वाले का यह दावा है कि उसके पास पर्याप्त सबूत वीडियो और ऑडियो के रूप में है, जो यह साबित करते हैं। पीड़ित का कहना है की वह बीते कई वर्षो से दुकान नंबर 465 के सामने अपना ठिया लगाए हुए है। पर यह रंगदारी मांगने का सिस्सिला तब शुरू हुआ जब यह दुकान सोनी नमक व्यक्त ने वर्ष 2023 में खरीदी।



वहीं पीड़ित ने यह भी कहा कि दुकान का मालिक सोनी नगर निगम की जमीन पर कब्जा करवाता है और इसकी मदद मार्केट का पूर्व प्रधान वीरा करता है।




दिल्ली पुलिस पर अपना विश्वास जताते हुए पीड़ित ने दिल्ली पुलिस को पिछले 10 से 11 महीने में तकरीबन 6 से 7 शिकायत दी है, जिसके डीडी नंबर भी मौजूद है। दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों को भी यह शिकायत दी गई साथ ही नगर निगम एस.पी सिटी जोन कश्मीरी गेट,  प्रधानमंत्री दफ्तर, गृह मंत्रालय, मानव अधिकार आयोग, दिल्ली मुख्यमंत्री दफ्तर, सेक्रेटरी दिल्ली , दिल्ली उपराजपाल व अन्य कई महाक्मों में पीड़ित ने शिकायतें दी हैं, परंतु महीनों बीत जाने के बाद भी अब तक पीड़ित को कोई राहत नहीं मिली है। 



दिल्ली पुलिस की तरफ से अब तक कोई विवेचक गठित नहीं हुआ इस रंगदारी के मामले में किसी ने अब तक कोई जांच नहीं करी। वही पीड़ित का कहना है चौकी में तैनात सुरेश नाम के सब इंस्पेक्टर ने इस मामले को 107/50 का रूप देकर लड़ाई झगड़े का बताते हुए मुकदमा दर्ज कर दिया है। 



पीड़ित का साफ तौर पर कहना है कि मेरे पास जो सबूत है उनको कोई छू नहीं रहा। क्योंकि जो आरोपी है वह बाज़ार संघ का पद धारक है साथ ही काफी पैसे वाला है और आरोपी का साफ तौर पर कहना है कि पुलिस प्रशासन और सिस्टम को मैं अपनी जेब में रखता हूं जहां जाना है जाओ, और पुलिस की कार्यवाही शायद आरोपी की इस बात को सही साबित कर रही है। 








अब पीड़ित का न्यायालय पर ही विश्वास है और आखिरी सहारा भी। पर क्या कहा जाए ऐसे पुलिसकर्मियों को जो "दिल की पुलिस"के खिताब को मिट्टी में मिलने का काम कर रहे हैं?




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