प्रशासन कि लापरवाही, प्रतियोगी छात्र-छात्राओं से हो रही उगाही

कहावत है अंधेरी नगरी चौपट राजा। इसी कहावत को सच करती उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दिखाई दे रही है। जहां उत्तर प्रदेश के अंदर 16 लाख प्रतियोगी छात्र छात्राओं ने सत्र , 2019-2020 का यूपीटेट परीक्षाओं का आवेदन किया, जिसके बाद गत वर्ष की परीक्षाओं में 22 प्रश्नों में हेरफेर देखने को मिला, या कहा जाए कि गलत प्रश्न देखने को मिले, जबकि यह प्रश्न पीएनपी के एक्सपोर्ट द्वारा बनवाए जाते हैं। जिसके लिए उनको अच्छा शुल्क भी सरकार मुहैया कराती है। फिर भी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों?



उत्तर प्रदेश के अंदर पिछले कुछ सालों से यह देखने को मिला है, की हर वर्ष यूपीटेट के प्रश्न पत्रों में गलत प्रश्नों का चयन किया जाता है। साथ ही जिसके बाद मामला अदालत तक पहुंचता है, और अदालत की तरफ से तारीख पे तारीख मिलती है। जिससे परेशान होकर कई छात्र खुदकुशी वह डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं। 


सवाल यहां यह खड़ा होता है की छात्र-छात्राओं की खुदकुशी की जिम्मेदारी क्या सरकार लेगी या वह संस्थान लेंगे जिसकी गलती से यह गलत प्रश्न परीक्षा में चयनित दिए जाते हैं। और तमाम देश के आने वाले भविष्य को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।


साथ ही 69000 शिक्षक की भर्तियां यूपी सरकार द्वारा निकाली गई थी, जिसमें कट ऑफ को लेकर परीक्षार्थी और सरकार में संघर्ष चल रहा है। 


सरकार की तरफ से व सरकारी संस्थानों की तरफ से इन बड़ी गड़बड़ियों की जिम्मेदारियां कौन लेगा हाल ही में यूपी टेट परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक छात्रा ने खुदकुशी की है।


छात्रों ने बताया कि पीएनपी के आदेश के अनुसार अब प्रश्नों की आपत्ति के लिए ₹500 प्रति प्रश्न शुल्क देना होगा, जो कि पहले निशुल्क था। जिसके चलते जो मध्यमवर्गीय व गरीब छात्र छात्राएं अपने गलत प्रश्न के लिए आपत्ति भी नहीं कर पाए हैं। अब इनके भविष्य का जिम्मेदार कौन?


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