मैं मजदूर हूँ मजबूर नहीं,दो वक्त की रोटी ने किया

*आशू यादव की खास रिपोर्ट SUB Bureau Chief Kanpur*✒️✒️
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*मैं मजदूर हूँ मजबूर नहीं,दो वक्त की रोटी ने किया मजबूर*


*मैं मेहनतकश हूँ मैं कभी हार नहीं मानता, मैं अपनी मेहनत का ही खाता था।कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने आज एक मेहनतकश को हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया।मैने कभी नहीं सोचा था कि मेरे जीवन में ऐसा क्षण भी आएगा जब मै अपनो के ही बीच बेगाना बनकर रह जाउंगा,मैं भूखा रहकर अपनी मंजिल तय करूंगा, मैं तो वह था जो पत्थर* *को तोड़कर रोटी निकाल लेता था, मैंने बचपन से ही मेहनत करना सीख लिया था, जिस प्रकार लोग अपने बच्चों को अपना व्यापार सिखाते हैं उसी प्रकार मैंने भी मजदूरी करना सीख लिया था, मैं कभी स्कूल नहीं गया क्योंकि मेरे माता पिता का कोई एक ठिकाना नहीं था जहां वह मजदूरी करते थे हम वहीं रहते थे।मैंने भी वही सीखा जो हमारे पिता करते थे यानी कि मजदूरी,मैंने अपनी मेहनत से न जाने कितनों के आशियाने बनाए, न जाने कितनी फैक्ट्री,न जाने कितनी सड़कें, और न जाने कहां कहां मैने मजदूरी की,या यूं कहें* *कि हमने अपनी मेहनत से पूरे देश को रोटी,कपड़ा, मकान, सभी कुछ दिया, यहां तक की हमने देश की सरकारों को भी अपना योगदान दिया, लेकिन मैं दो वक्त की रोटी के अलावा न सही ढ़ंग से तन के कपड़ें और न ही रहने के लिए छत बना पाया,दूसरों की छत बनाते बनाते कब जीवन निकल गया पता ही नहीं चला, मैं जब अपने घर से चला था तो बड़ों ने मुझसे कहा था कि देश छोड़कर परदेश मत जाओं,(गांवों में लोग आज भी शहरों को  परदेस ही कहते है) अपने यहां रहकर भले ही आधी रोटी मिले, रूखा सूखा, खा लो मगर बाहर न जाओ,लेकिन मैंने उनकी एक न सुनी और मैं अपने   गांव को छोड़कर शहरों की चकाचौंध दुनिया में आ गया।लेकिन अब मुझे समझ में आ गया कि हमारे बड़े बुजुर्ग हमें घर छोड़ने को क्यों कहते थे वह इस वैश्विक महामारी ने मुझे याद दिला दिया।बीते दो माह से अधिक समय से लोग अपने घरों में कैद हैं लेकिन मेरा तो कोई घर भी नहीं है।मेरे पास तो जो जमा पूंजी थी वह सब समाप्त हो गई थी, मै मेरे परिवार के साथ अब दूसरों पर निर्भर थे,मै मेहनतकश भला दूसरों पर निर्भर कब तक रहता, मैंने कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया था आज परिस्थिति ने मुझे हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया।अब न मेरे पास पैसे थे और खाने को रोटी,सरकारों ने भी अपने हाथ खींच लिए, अब मेरे पास दो ही विकल्प थे एक अपने गांव जाना, और दूसरे यहां भूख प्यास से मरना, मैंने तय किया और मैं हजारों किलोमीटर दूरी तय करने के लिए अपने परिवार के साथ निकल पड़ा, अब मैं पूरी तरह से बेबस था खाने को रोटी नहीं, पीने को पानी नहीं, पैर में चप्पल नहीं, चलने को सवारी नहीं, आज मैं बेवस बे सहारा अपने परिवार के साथ जा रहा था।मुझे अपने पर रोना आ रहा था काश मैं अपने गांव से बाहर न गया होता, अपने गांव में ही मेहनत करता, जहां मेरी घास की झोपड़ी थी उसमें मिट्टी का ही सही एक छोटा सा घरोंदा बनाता,आज इस बिपत्ति मे परिवार के साथ रहता, मैं कितना मूर्ख था, चला था दूसरों के शहर में अपना आशियाना ढ़ूंढने, आज इस महामारी ने मुझे मेरा जीवन याद दिला दिया, क्या मालूम था कि जिसका आशियाना वह बना रहे है वह एक दिन मुझे त्याग देंगे,यदि मैं समाज या सरकार से पूंछे कि मेरा दोष क्या है आप ने मुझे सड़कों पर क्यों छोड़ दिया, क्या मैं इस समाज का हिस्सा नहीं था।मैं तो मेहनतकश था अपने जीवन का भरण पोषण अपनी मेहनत से ही करता था मुझे कोई खैरात भी नहीं चाहिए थी,मुझे केवल मेरे गांव तक आप पहुंचा देते,लेकिन आप से किसी तरह की उम्मीद करना बेमानी होगी,मैं गरीब हूं, मजदूर हूं, इसीलिए आपने मुझे मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया, शायद अब हमारी आपको कोई जरूरत ही नहीं रह गई है,अब मैं ईश्वर के सहारे निकल पड़ा हूं, शायद मुझे मेरी मंजिल मिले न मिले,मैंने कई बार सुना था कि भारत गांव में बसता है इसीलिए मैं अपने साथियों से कहना चाहता हूं कि आप अपने भारत में ही रहे, इण्डिया जाने का प्रयास न करें।इस वैश्विक महामारी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है।मैं जिस सफर पर निकला था वहां मैं अकेला नहीं था बल्कि करोड़ों की तादात में मेरे साथी थे उनमें बुजुर्ग, महिलाएं,और बच्चे शामिल थे,जो इण्डिया से भारत के लिए पलायन कर रहे थे,ऐसा लग रहा था जैसे किसी देश का बटवारा हुआ हो,इन सबको देखकर मुझे भी इनसे प्रेरणा मिल रही थी, हमें कोरोना जैसी महामारी का आभास बिल्कुल नहीं था लेकिन भूख प्यास से मरने का खतरा ज्यादा था।मैं जिस रास्ते पर चल रहा था वहां मेरे अलावा दूर दूर तक कोई नहीं था,हां कुछ जगहों पर हमारे सिस्टम के लोग जरूर मिले, जो मुझे देखकर मुंह फेर लेते थे,मुझे ऐसे सिस्टम को देखकर अपने आप रोना जरूर आता था, ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही देश में एक बे पहचान वाला व्यक्ति हूं,मेरा यहां कोई नहीं है, मै बिना पहचान का एक व्यक्ति बनकर रह गया हूं।


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