बीमारी अमीर लाए, प्रधानमंत्री ने ताली-थाली बजाई मगर सड़क पर भूखा-प्यासा ‘गरीब’ मर रहा है

बीमारी अमीर लाए, प्रधानमंत्री ने ताली-थाली बजाई मगर सड़क पर तो भूखा-प्यासा ‘गरीब’ मर रहा है


30/03/2020  M RIZWAN 



आज सड़क पर बेहाल-बेघर इन ग़रीबों की ये तस्वीरें देखकर रूह काँप गयी। किस बात का लॉकडाउन, किस बात की नौटंकी? पूरा देश सभी सामाजिक, धार्मिक, भौगोलिक और राजनीतिक भेदभाव भुलाकर इस विपदा की घड़ी में एक पैर पर खड़ा होकर सरकार के हर निर्देश की पालना कर रहा है। अगर देश की हुकूमत चाहती तो आर्थिक भेदभाव के शिकार इन लोगों की बेबसी और लाचारगी भी समाप्त कर सकती थी।


मैं फिर दोहरा रहा हूँ। हम सब एकजूट होकर सरकार के साथ खड़े है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम सरकार की ख़ामियों को भी उजागर ना करे। जो लोग सरकार की विचारधारा को नहीं मानते उन्होंने भी इस संकट की घड़ी में स्वास्थ्यकर्मियों की हौसला अफजाई के लिए प्रधानमंत्री की एक आवाज़ पर थाली और ताली बजाई। वो Scientific था या Non-scientific इस पर बहस हो सकती है लेकिन इस महामारी के ख़िलाफ़ वह एकजूटता दिखाने का प्रयास था और लोगों ने सक्रियता के साथ सहयोग भी किया।


 


लेकिन क्या आपको निम्नलिखित सवाल इस मज़बूत सरकार के मज़बूत नेता से नहीं करने चाहिए?


1. क्या भारत जैसे विशाल देश में महज़ चार घंटे का समय देकर पूरा लॉक डाउन कर देना वाजिब फ़ैसला है? क्या अचानक फ़ैसला सुनाने से बेहतर नहीं होता कि जिस दिन प्रधानमंत्री जी ने थाली-ताली पिटवाने का ऐलान किया था उसी दिन से एक हफ़्ते का समय देशवासियों को चेतावनी, सुझाव या निवेदन के साथ दे सकते थे?


2. नेपाल जैसे देश ने अपने नागरिकों को एक हफ़्ते का समय दिया था। सरकार ने नोटबंदी जैसे जल्दबाज़ी में लिए गए फ़ैसले और दुष्प्रभावों से कोई सबक़ क्यों नहीं सीखा?


3. विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार फ़रवरी से इस बात को उठा रहे थे तो सरकार उनका मज़ाक़ बनाकर हंसी उड़ा रही थी। कह रही थी यहाँ चिंता की कोई बात नहीं। डॉनल्ड ट्रम्प के कार्यक्रम आयोजित करने में मशगूल थी। क्या सरकारी सूचना तंत्र इतना कमज़ोर है?


 


4. क्या इतना बड़ा और बेहद संवेदनशील फैसला लेने से पहले से सभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से मशविरा लिया गया कि वो उसके उपरांत होने वाले प्रभावों को संभाल पाएँगे? क्या राज्य सरकारों को इस अचानक फ़ैसले के उपरांत किसी प्रकार की आर्थिक मदद का और राहत कार्यों में मदद का कोई भरोसा दिया था?


5. क्या प्रधानमंत्री को इस बहुभाषी राष्ट्र के सर्वदलीय नेताओं से बात कर कोई सुझाव या राय नहीं लेनी चाहिए थी?


6. क्या देशभर में कार्यरत कर्मचारियों, दैनिक मज़दूरों, रिक्शा, सब्ज़ी रेहड़ी और प्रवासी ठेकेदारों और कामगारों के बारे में सोचा?


7. क्या यह फ़ैसला लेने से पहले कोरोना की जाँच किट, डॉक्टरो के लिए Personal Protection Kit, N95 मास्क, हैंड सनिटाइज़र, वेंटिलेटर, isolation bed इत्यादि की उपलब्धता और राज्य सरकारों को मेडिकल उपकरण पहुँचाने की कोई तैयारी की थी।


8. क्या खेतों में खड़ी रबी की फ़सलों और किसानों के बारे में किसी आर्थिक पैकेज़ के बारे में पहले से सोचा था?


9. क्या प्रदेश सरकारों को इस फैसले से होने वाले नुकसान का आँकलन करने को कहा गया था?


ऐसे आकस्मिक एकतरफा फैसले बीमारी रोकने के लिए जाते है लेकिन ज़रा फिर इन तस्वीरों को देखिए। ये डरावनी छवियाँ है। कहाँ है सोशल डिस्टन्सिंग? क्या ये ग़रीब लोग सरकार के अराजक फ़ैसले का शिकार नहीं है? क्या पशुओं की तरह बसों में ढूँसने वाले ग़रीबों पर अब कोरोना का कोई ख़तरा नहीं? इनके आवागमन पर रोक भी सरकार लगा रही है और भेज भी सरकार रही है? ग़ज़ब विरोधाभास है? समाज की अंतिम पायदान पर खड़े ग़रीबों ने क्या गुनाह किया था?


हवाई जहाज़ों में भर-भर कर देश में बीमारी लाने वाले तो अपने आलीशान मकानों में क्वारेनटाइन कर रहे है लेकिन इन बेचारे करोड़ों ग़रीबों को क्वारेनटाइन तो छोड़िए, लॉकडाउन का सही अर्थ भी नहीं पता होगा? ये बेचारे वो असहाय सच्चे देशभक्त नागरिक है जो हर कदम पर हरदम अमीरों और सरकारों के हाथों ठगे और छले जाते हैं। अंत मैं मेरे दाता दयाल से यही अरदास कता हूँ कि आप अपने रहमों करम से इन ग़रीबों की Herd Immunity को और मज़बूत बनाइए ताकि हम सब इस महामारी से बच सके।


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