कानपुर-
लॉक डाउन के चलते संपूर्ण देश में जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए तमाम लोग देखे जा रहे हैं जिसमें डॉक्टर्स के बाद पुलिस का अहम रोल नजर आ रहा है। राज्यों की पुलिस भी जरूरतमंद लोगों की सेवा करती नजर आ रही है।
परंतु चांद पर दाग है इस चीज को दर्शाने के लिए पुलिस विभाग में कुछ ऐसे पुलिसकर्मी भी हैं जो पुलिस की महान भूमिका पर चिन्ह लगा देते हैं। तमाम महकमे की मशक्कत को धूल में मिला देते हैं। जिससे इंसान और इंसानियत भी शर्मसार हो जाती है।
ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के उन मजदूरों की है जो मेट्रो ट्रेन का काम करने कानपुर आए थे। परंतु लॉक डाउन के चलते वह अपने घर नहीं जा सके। जिस ठेकेदार द्वारा उन्हें लाया गया था वे ठेकेदार थोड़ा बहुत खाने के लिए दे देता है। क्योंकि लोग ज्यादा है और भूख भी, जिसके चलते ठेकेदार द्वारा दिए खाने से पूरा नहीं हो पाता। भूख की तड़पने मजदूर महिला को गुरुदेव चौकी पहुंचा दिया जहां पर मौजूदा पुलिसकर्मियों ने महिला से कहा कि वह थाना नवाबगंज जाए। जिसके बाद वह थाना नवाबगंज गई और पुलिसकर्मियों ने उसे डरा धमका कर भगा दिया। नवाबगंज थाने पहुंचने के लिए महिला ने 6 किलोमीटर पैदल यात्रा तय की थी। थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने यहां तक कह दिया कि यह थाना है तो राशन की दुकान नहीं।
स्थिति की गंभीरता देखते हुए कुछ मीडिया कर्मियों ने 25 लोगों के भोजन का इंतजाम करवाया।
मजदूर जो बिहार और उत्तर प्रदेश के ही अन्य गांव से हैं। एक मजदूर महिला से बात करने पर यह बताया कि खाने के लिए जब उसने थाने में गुहार लगाई तो उसको डरा धमका के व पिटाई करवाने का दबाव बनाकर घर भेज दिया। अन्य मजदूरों से बात करने पर भी उन्होंने यही बताया की पुलिस से भूख मिटाने की गुहार लगाने पर पुलिस डरा धमका कर वापस भेज देती है। जिसके बाद डरा हुआ आदमी अपनी भूख का गला दबा देता है।
जो भी राशन इन मजदूरों को प्राप्त हो पा रहा है वह इनकी संख्या और भूख को देखते हुए बहुत कम है। जिसके चलते मजदूरों ने सरकार से एक ही गुहार लगाई है या तो उन्हें खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिले या फिर उनको किसी साधन के द्वारा उनके गांव वापस जाने दिया जाए। लॉक डाउन के चलते सबसे ज्यादा कमर गरीब की ड्यूटी है।